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गुर्जिफ़: एक व्यक्ति और उनका साहित्य

लेखक: जेम्स मूर

“मेरे पास बहुत अच्छा चमड़ा है उन्हें बेचने के लिए जो

अपने लिए जूते बनाना चाहते हैं |”

जी आई गुर्जिफ़ 

जॉर्ज इवानोविच गुर्जिफ़ कौन थे? लेखक? नृत्य निर्देशक? मनोचिकित्सक? संगीतकार? चिकित्सक? निपुण बावरची? वह सभी वर्गीकरण से परे हैं| किंतु यह स्पष्ट है की उन्होंने मौखिक रूप से प्रसारित किया गया ग़ूढ ज्ञान, जो उन्होने एशिया में बीस वर्ष की खोज में एकत्रित किया था,संगठित किया और वो पश्चिम में चेतना के संभावित विकास की एक ऐसी कार्यप्रणाली ले कर आए जो ब्रह्मंडविज्ञान के अद्भुत पैमाने पर थी| उनकी पुकार आमूल परिवर्तनवादी है| जागो! जागो अपनी असंदिग्ध सम्मोहक नींद से चेतना और अन्तरात्मा की ओर| 

 

आज से एक सौ वर्ष पूर्व गुर्जिफ़ कार्स नाम के एक नगर, जो रूस और तुर्की की सीमाओं पर स्थित है, वहाँ के एक निर्धन बालक थे| आज उनका नाम एक प्रचलित ज़बानी प्रतीक बनता जा रहा है और (जो की डार्विन, मार्क्स, फ्रॉइड और आइनस्टाइन की तरह) एक अनोखे ढंग से स्व-व्याख्यात्मक बन गया है|जो उनको अपने सीमित दायरे में परिस्थिति विज्ञान आंदोलन का प्रेरक या यूसायकियन उपचारों के आरंभकार्ता के रूप में उपयुक्त करते हैं, हालाँकि निस्संदेह वह पहलुओं की झलक देखते हैं, ना ही वह उनके पैमाने को और ना ही उनकी धार्मिक परंपराओं के प्रक्षेप पथ को समझ पायें हैं| 

 

गुर्जिफ़ पर एक वास्तविक दृष्टिकोण के लिए हम रुख़ करते हैं उनके समर्पित अनुयायीयो की मंडली की ओर, जिन्होने अपनीअन्तर्दृष्टि का भुगतान अपने परिश्रम से किया| यह वो पुरुष और नारी थे जो चुंबकित हुए, किसी स्वयं सहायतावादी अनुमानित कल्पना से नहीं, परंतु एक ऐसे मानव से जिनका दर्जा रयबेलेस जैसा था; उन सूक्ष्म ऊर्जाओ से जो उनकेआदेश पर थीं;उनकी संवेदना से; एकअभ्यास को प्रसारित करने की उनकी क्षमता से| उनकी पत्रिकाएँ और आत्मकथाएँ एक बहुमूल्य और अनोखा साहित्य बनाती हैं| गुर्जिफ़ को उनकी अनिवार्य ऐतिहासिकता मिलती है फिर भी किसी तरह संघर्ष करके वह इस से मुक्त हैं और एक मिथक की संशक्ति और उपस्थिति में प्रकट होते हैं|

गुर्जिफ़ से सामना

गुर्जिफ़ की कोई स्पष्ट जीवनी नहीं है और न ही उसके होने की कोई दूर की संभावना ही है ()| उनका जन्म अलेक्ज़ांड्रोपॉल में लगभग १८६६ में हुआ था और वह उज्ज्वलित मंच पर पहली बार मॉस्को में १९१२ में प्रकट हुए| उनके सामने प्रस्तुत होना हमेशा एक परीक्षा थी ; उनसे पहली भेंट -निश्चित रूप से उनके लिए जो उनके अनुयायी बनें-एक ऐसी धुरी थी जिस पर एक संपूर्ण जीवन घूमनें लगता था; उसके बाद आने वाले वर्षों में एक मनुष्य, अपनी सभी स्वाभाविक कमज़ोरियों के साथ, लगभग पूरी सच्चाई से, गुर्जिफ़ की निरंतर माँगों को पूरा करता रहता | वहीं पर सारा खेल था | जहाँ तक हमारा सवाल है, हम केवल यहाँ और इसी क्षण में जीवित रह सकते हैं | मगर फिर भी किस स्तर तक हम एक शिष्य के अनुभव में, करुणा के आंतरिक कार्य द्वारा, प्रवेश करतें हैं, (इस संधर्ब में) उनके संस्मरण केवल एतिहसिक होने से अधिक मूल्य रखते हैं | 

 

संगीतकार थॉमस दे हार्टमन (१८८६-१९५६) और उनकी पत्नी ओल्गा बारह वर्ष तक गुर्जिफ़ के निकट अनुयायी और सहयोगी थे और उनके कारण ही गुर्जिफ़ का संगीत आज हम तक पहुँचा है| 'अवर लाइफ विद मिसटर गुर्जिफ़' में उन्होने हमारे साथ उस सफ़र को साझा किया है जो उन्होने गुर्जिफ़ के साथ किया था ; १९१७ में संकट में जकड़े हुए पेट्रोग्रेड से लेकर कॉकसस पहाड़ों के पार टिफ़्लिस तक और अंत में १९२२ में पॅरिस पहुँते हुए|उनके लेखन की विशेषता सरलता है जो कभी कभी निकटतम भोलेपन जैसी है लेकिन जो गुर्जिफ़ की छाप को और अधिक अद्भुत बना देती है| हम उनको निष्पक्ष ढंग से, लगभग मानों अद्रश्य रूप में, असमंजस के दृश्यों और भ्रामक अशांति के बीच घूमते हुए; हर कठिनाई और संकट को एक क्रियात्मक शिक्षा के नये अवसर के रूप में स्वागत करते हुए पाते हैं| 

अक्तूबर १९२२ में गुर्जिफ़ नें 'प्रायरे एट फाउंटनब्लो एवान' ले लिया जो की २०० एकड़ की ज़मीन पर एक शेटो था; यहाँ उन्होंने शीघ्र ही स्व:अध्ययन की परिस्थिति तैयार करीं जो की युरोप में अभूतपूर्व थीं| उनकी अपने अनुयायियों के बच्चों के साथ एक विशेष घनिष्ठता थी और वह उनकी शिक्षा का, इस शब्द के सही मायने में, ध्यान रखते थे| कभी वह उनको चुनौती देते थे; कभी वह उन्हें एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि की दिशा में महान विनम्रता के साथ ले जाते थे| उनकी शिक्षा में हमेशा एक आश्चर्य के अंश और व्यावहारिकता की पहचान होती थी| फ्रिट्ज़ पीटर्स (१९१३-१९८०) ग्यारह से लेकर पंद्रह साल की उम्र तक प्रायरे में रहे और 'बॉयहुड विद गुर्जिफ़' में, जो उनकी रोचक और कहीं कहीं बहुत ही हास्यपद जीवनी है, अपने उस विशेष अनुभव को फिर से जीवित करते हैं|

१९२४ की बसंत ऋतु में गुर्जिफ़ अपने तैयार किए हुए अनुयायियों के साथ अपने पवित्र नृत्यों के सार्वजनिक प्रदर्शनों के लिए अमेरिका गये; और प्रमुख बुद्धिजीवियों पर उनका प्रभाव व्यापक था| इसी तरह नृत्यों की बोली एक अँग्रेज़ नवयुवक स्टॅन्ली नॉट (१८८७-१९७८) के लिए स्पष्ट थी, जिनकी एक अलग सरल पृष्ठभूमि थी: जिन्होंने कई व्यवसायों में कड़ी मेहनत करते हुए दुनिया घूमी हुई थी और जिनकी भावनाएँ ख़ाइयों के कष्टों में कमज़ोर हो गयीं थीं|'यहाँ' नॉट नें लिखा ' वो है जिसकी खोज में मैं दुनिया के कोने कोने में गया'| गुर्जिफ़ के प्रति उनकी निष्ठा आजीवन और अविभाजित सिद्ध हुई| उन्होंने कई ग्रीष्म ऋतु प्रायरे में बिताईं और 'टीचिंग्स ऑफ गुर्जिफ़' में उन्होंने बोस्वेल्लियन शक्ति के साथ दोनों अपने भीतर और बाहरी अनुभव बताएँ हैं| उन्होंने गुर्जिफ़ की पुस्तक' बेल्ज़ीबब' परअपने मित्र ए र ऑरेज की टिप्पणी को पूरी गहराई से(हांलांकि निश्चित रूप से नहीं) शामिल किया है|

 

गुर्जिफ़ नें १९२५ से १९३५ का दशक अपने लेखन पर समर्पित किया जो उहोंने केफे डे पे की ध्यान भंग करने वाली परिस्तिथि में पूरा किया| यहाँ १९३२ में उनकी आकस्मिक भेंट अमरीकी लेखिका कॅत्रिन ह्यूम (१९००-१९८१) से हुई जिन्होंने बाद में अपने उपन्यास 'द नन स्टोरी' से प्रसिद्धि प्राप्त करी| उनकी गुर्जिफ़ की निजी अनुयायी बनने की तीव्र इच्छा थी लेकिन लगभग चार साल बीतने के बाद ही उनको अपनी दृढ़ता का पुरस्कार मिला| उनकी आत्मकथा 'अनडिसकवर्ड कंट्री' में चार महिलाओं (जो की सभी परिष्कृत, अवांट-गार्डे और अविवाहित - और कुछ स्पष्ट समलैंगिक थीं) का एक विशेष संघ, जो गुर्जिफ़ के रू लेबी के फ्लेट में प्रतिदिन मिलता था, उसमें उनका अनुभव पूर्ण रूप से उभर कर आता है | अपने सबसे बुरे रूप में उनकी शैली खुशामदी है; अपने सबसे अच्छे रूप में यह जीवंत है| गुर्जिफ़ की मानवता और विभिन्न प्रकारों के साथ काम करने की क्षमता और साथ ही संघ की आपसी और अपने शिक्षक के प्रति ज़िम्मेदारी प्रभावशाली ढंग से व्यक्त होती है| उन्होंने अपनी छोटी मंडली का नाम 'द रोप' रखा जिससे वह चड़ाई में एक दूसरे की निर्भरता को न भूलें| 

 

१९४० में जर्मनी के पॅरिस प्रवेश करने से पहले गुर्जिफ़ को पॅरिस छोड़ने का आग्र्ह  किया गया लेकिन गुर्जिफ़ नें ६ रू दे रेनार्ड में अपने मामूली से फ्लेट में रहना पसंद किया| हालाँकि वह अपने सत्तर के दशक में थे, उन्होंने अपनी उर्जा  के उपयोग में कोई कमी नही छोड़ी; वह व्यक्तिगत परामर्श देते रहे; वह साए प्लाएल में नृत्य और मूव्मेंट्स की नयी शृंखला सिखाते रहे; और किसी न किसी तरह उस अपर्याप्त समय में अपने दुस्साहसिक उत्सवो में पितृसत्तात्मक आतिथ्य को बनाए रखते रहे| गुर्जिफ़ में फ्रांसीसी रूचि जो पहले थोड़ी ही थी, अब बढ़ गयी थी जिसने कई बुद्धिजीविओ को आकर्षित किया| उनमे से एक थे रेने ज़ुबेर(१९०२-१९७९) जो की एक फिल्म निर्देशक थे|उनका पतला ग्रंथ 'हू आर यू मिसटर गुर्जिफ़' एक शांत और बारीकियो पर ध्यान देने वाला एक  चिंतन है; गुर्जिफ़ की पहेली के सामने और उनको ईसाई धर्म के संबंध में  स्थित करने की गहरी चिंता में ज़ुबेर ने खुद को बार बार प्रश्न किया|

 

गुर्जिफ़ की मृत्यु से पँद्रेह महीने पहले जे जी बेनेट जो उनसे कुछ ही समय के लिए मिले थे, उन्होंने एक अधिक गंभीर हालाँकि आवश्यक रूप से अनिरंतर संपर्क  स्थापित किया| एलिज़ाबेथ मेयाल (१९१८- १९९१) जो बाद में बेनएट की पत्नी बनीं, जनवरी १९४९ में पॅरिस में रहने के लिए स्वंतंत्र थीं और इस तरह से रू डे करनेल्स की अनूठी दुनिया की भागीदार बनीं| यहाँ पर गुर्जिफ़ के आख़िरी रात्रि भोजनों पर, उनके रहस्यमए 'टोस्ट ऑफ द ईडियट्स' नें अंतिम और गहन शिक्षण के रूप में काम किया| 'ईडियट्स इन पॅरिस' बेनेट की अनिर्मित डाइयरी गुर्जिफ़ के जीवन के अंतिम सौ दिनों को लगभग पीड़ादायक ईमानदारी और तुरंतता से उनके शिष्यों के मार्मिक संघर्ष को प्रदर्शित करती है| गुर्जिफ़ का निधन २९ अक्टोबर १९४९ को न्य्यूयियी में हुआ|

उनका शिक्षण

तो निश्चित रूप से गुर्जिफ़ का शिक्षण क्या था? हालाँकि इस प्रश्न में स्पष्टीकरण का वादा नज़र आता है लेकिन यह अपनी ही कठिनता में विकारित हो जाता है| समय हेमलॉक की तरह अधिकृत रूपांतरों को समाप्त कर देता है और गुर्जिफ़ नें तो कभी भी कोई जारी ही नहीं किया था| 'मैं सिखाता हूँ' उन्होंने गहनता से कहा था 'कि जब बारिश होती है तो फूटपाथ गीला हो जाता है'|उनके विचारों को सजीव करने वाली शक्ति में पल, परिस्थिति, प्रकार और उनके शिष्य की स्थिति पर ज़ोर दिया जाता है|  उनकी एक निरंतर माँग है 'खुद को जानो' जिसमे वह मेटाफ़िज़िक. मेटासाइकॉलॉजी और मेटाकेमिस्ट्री को ऐसे जोड़ते हैं जिसका सार नही लिखा जा सकता है; यह मानवीय प्रकार के अद्धयन, चेतना की घटनाओं के अद्धयन और अर्ध गणितीय पैमाने पर ब्रह्मांड और सूक्ष्म जगत को जोड़ती है| यह जटिल उपकरण एक प्रधान विचार से प्रकाशित है; मनुष्य को हमारे पवित्र जीवित ब्रह्मांड की सेवा में आत्म पूर्णता का प्रयास करने के लिए कहा जाता है| क्या हम पायथागोरस या प्लेटो, ईसा मसीह या मिलरेपा की गूँज पकड़ सकते हैं; मेंडेलेव, शेल्डन, वर्नाडस्की, वाट्सन जैसे आधुनिक मनुष्यों के साथ सीमित समानताएँ देख सकते हैं? अपने आप को और अपनी खोज को तुलनाओं की भूलभुलैया और विचारों की वंशावली में खो देना आसान है| गुर्जिफ़ स्वयं शब्दों से संतुष्ट नहीं थे| उनके मूव्मेंट्स और पवित्र नृत्य एकाएक सार्वभौमिक नियमों के गुप्त लिपि सबंधी प्रतीक और व्यक्तिगत खोज के क्षेत्र थे| साठ साल की उम्र के पास आने पर उन्होंने अपना ध्यान लेखन की ओर निर्देशित किया| उनकी प्रस्तुतियां वरणात्मक की जगह अनुमानी थी और उनका रूप पूरी तरह से अनपेक्षित था:पहले एक विशेष प्रकार का ब्राह्मंजलि महाकाव्य, फिर एक विशेष प्रकार की आत्मकथा|

 

'बीलज़बब्स टेल्स टू हिज़ ग्रॅंडसन' गुर्जिफ़ की उत्कृष्ट कृति है और कोई अन्य पुस्तक हमें उनके इतना करीब नही लाती है | जो पाठक इसकी गहराई और अत्यंत इच्छित शैलीगत कठिनाई की दोहरी चुनौती का सामना करते हैं, जो की बार बार आवश्यक सूक्ष्म ध्यान को बटोर सकते हैं-उनको यहाँ सांकेतिक शब्दों में गुर्जिफ़ के मनोवैज्ञानिक और ब्रह्मांड संबंधी विचार और एक मौलिक आलोचना मिलेगी|

अंतरिक्ष यान की लंबी यात्रा पर बीलज़बब अपने पोते हसीन को, आनंदमय रूप में 'सर्व और सब कुछ' के बारे में अपना ज्ञान व्यक्त करते हैं| उनकी निष्पक्ष दयालु आँखों से हम पृथ्वी पर जीवन को बहुत दूर से सूक्ष्म स्पष्टता के साथ देखते हैं | हज़ारों वर्षों सेऔर महाद्वीपों में हम मनुष्य को गहरी नींद मे सोता हुआ देखते हैं, आँख बंद करके और बिना किसी उद्देश्य के संघर्ष करता हुआ और पीड़ा सहता हुआ, युद्ध और जुनून से विभाजित, जिसको छूता है उसको दूषित करता हुआ; और फिर भी अपने स्वाभाव के एक अजीब दोष से वह निपुणता से उन्हीं उपकरणों से जो घायल करतें हैं और उन्हीं तरीकों से जो उसको धोखा देते हैं उनसे चिपका रहता है|

क्या यह एक कठोर तस्वीर है?इसमें कोई संदेह नहीं है| और गुर्जिफ़ के मुक़ाबले किसी दूसरे के हाथों में यह निर्दयता पूर्वक विनाशकारी होती, लेकिन गुर्जिफ़ हमें जीवन की ओर बुला रहें है| यह उनकी प्रतिभा है की उन्होंने एक निष्पक्ष आशा को इन अंधेरे पानी में नाँव की तरह उतारा है| वह वसीहत के रूप में हमें बीलज़बब की महान आकृति देते हैं जिसकी उपस्थिति मनुष्य को संकेत देती है की वह कैसा हो सकता है, जो अपने भीतर की दिव्य चिंगारी से अवगत है और सचेत परिश्रम से ब्रह्मांडीय योजना में अपने सच्चे स्थान की पूर्ति का प्रयास कर रहा है|

 

अपनी अगली किताब 'मीटिंग्स विद रिमार्कबल मेन' में गुर्जिफ़ नें अपने जीवन की पहली और कम से कम ज्ञात अवधि को उजागर किया है| अपने पिता और अपने पहले शिक्षक डीन बोर्श  के सौहार्दपूर्ण प्रभाव में उनका बचपन; फिर उनका प्रारंभिक पुरुषत्त्व जो कई वेषों में वास्तविक और सार्वभौमिक ज्ञान के लिए समर्पित था| उनकी भाषा थोड़ी और जीवंत है जो ट्रॅन्सककेशिया और मध्य एशिया की भूमि को हमारे सामने खोलती है जबकि साथ ही वह मानसिकता के समानांतर भूगोल और उसको भेदने के लिए जिस मार्ग का उन्होंने अनुसरण किया था उसकी ओर संकेत देते हैं|

हम गुर्जिफ़ के युवकाल के मित्रों- राजकुमारों, अभियंताओं, चिकित्सकों और पुजारिओं के साथ आंतरिक भागों में यात्रा करते हैं- पुरुष जो अपनी उपाय कुशलता, आत्म संयम और करुणा से उल्लेखनीय हैं| हम उन्हें मानो आमने सामने देखते हैं| उनके शब्द हमारे अंदर ऐसे बस जाते हैं जैसे की प्रत्यक्ष रूप से शांति के क्षण में बोले गये हों|

 

इस प्रकार अपनी प्रभावशाली आलोचना से भूमिस्थल को पूरी तरह से साफ़ करते हुए गुर्जिफ़ हमें नयी सृष्टि के लिए सामग्री प्रदान करते हैं जो हमारे कठिन दैनिक जीवन के अलावा और कुछ नहीं है लेकिन एक प्रश्न में डूबी और एक उद्देश्य की सेवा में स्थापित है और जो अपनी बुद्धिमत्ता और बुलंदी से वास्तव में मानवीय है|

१९१५ और १९१८ के बीच में गुर्जिफ़ नें उदारतापूर्वक अपने रूसी समूहों को ठोस तथ्यों का आश्चर्यजनक ढाँचा दिया जिसकी खोज में उनको बीस साल लगे थे| इस समय उनके शिष्यों में प्रमुख थे पियोट्र डेमियनोविच ओस्पेन्स्की (९१८७८-१९४७)जो की एक पत्रकार,गणितज्ञ और बुद्धिजीवी थे और जो अपनी किताब टरटियम ऑर्गनम के लिए पहले से ही प्रसिद्ध थे| इसी युग में जिसमें सामूहिक विनाश और वहशी विरोधाबास था उसनें ओस्पेन्स्की की मान्यताओं और एक अलग दर्जे के ज्ञान की भूख को और तीव्र कर दिया था| 'इन सर्च ऑफ द मिरैक्युलस' उनके मरणोपरान्त प्रकाशित हुआ| इसके चार में से तीन भागों में गुर्जिफ़ के स्वयं के शब्द हैं जो उन दिनों से संरक्षित हैं और शानदार ढंग से व्यवस्थित है| गुर्जिफ़ द्वारा स्वयं समर्थित यह लेखन कार्य निस्संदेह उनके मनोवैज्ञानिक और ब्रह्माण्ड संबंधी विचारों का सबसे सुलभ लेखा प्रदान करता है| साथ ही यह हमें एक समूह (ग्रुप) की विशेष परिस्थितिओ के उतना पास ले जाती है जितना कोई एक पुस्तक ले जा सकती है| क्षुब्धि का तीव्र अनुभव ,उत्तेजना और रहस्योद्घाटन की भावना जिसने १९१५ में ओस्पेन्स्की को उत्साहित किया था, इन वाक्यों और चित्रों से सभी उन पीडियों को प्रसारित होंगी(जिनका चाहे किसी भी बाहरी परिस्थितियों में मिश्रण हो) जो गुप्त रूप से खोज में है|

 

जीन डी साल्ज़मैन १९१९ में टिफ़्लिस में गुर्जिफ़ की शिष्या बनीं और तीस साल तक उन्होंने उनके कार्य की प्रत्येक व्यवस्था में भाग लिया| यहाँ तक की उनके जीवन के अंतिम दस वर्षों के दौरान, उनके समूहों (ग्रुप) का भी उत्तरदायित्व लिया| 'इन व्यूस फ्रॉम द रियल वर्ल्ड' में उन्होंने १९१७ और १९३० के बीच गुर्जिफ़ द्वारा दी गयीं  चालीस महत्वपूर्ण वार्ताएँ एकत्रित करीं हैं| हम उनके सरंक्षण के लिए उनके शिष्यों की शिक्षित यादों के आभारी हैं जिनको विवरण लिखना मना किया गया था| यदि ये शब्दांश में गुर्जिफ़ के शब्द नहीं हैं तो ये स्पष्ट रूप से उनकी प्रामाणिक वाणी है जो अपनी अचूक चुनौती जारी करती है|

गुर्जिफ़ के लिए मार्ग

कोई भी हो-चाहे वो गुर्जिफ़ के अनुकूल प्रतिक्रिया करे या उनके खिलाफ प्रतिक्रिया करे- बिना क्षुब्ध हुए उनकी बुद्धि की शक्ति को नहीं माप सकता| उनकी आवाज़ ऐसी प्रभावशाली आवाज़ों में से एक है जो विभिन्न प्रकार की गूँजे को पार करके भी अपनी स्वयं की गूँज और क्रियाशीलता रखती है ()| तो आइए हम संक्षेप में सुनें कुछ सार, दृष्टिकोण, विषयगत और गीतात्मक पुनः कथन-उनको गूँज मानकर और स्वीकार करते हुए एक जीवंत परंपरा में उनकी गहन वैद्यता को जो जीवित मानवों को सौंपी गयी है|

 

चार साल तक गुर्जिफ़ के करीबी शिष्यों में से एक होते हुए, पी डी ओस्पेन्स्की नें एक चौथाई सदी तक इंग्लेंड और अमेरिका में उनके विचारों की व्याख्या करी| ‘द साइकॉलॉजी ऑफ मेन्स पासिबल एवोल्यूशन’ में उन्होंने गुर्जिफ़ के एकत्रित शिक्षण में से मनोवैज्ञानक तत्वो को आसवित किया और बिना किसी स्वाद या सुगंध के इसे केवल ९२ पृष्ठों में प्रस्तुत किया| यह प्रस्तुति जो की ओस्पेन्स्की की व्याख्यान टिप्पणी पर आधारित है, इतनी स्पष्ट और संतुलित है की यह एक परिचय और सहयोगी यादगार के रूप में हमेशा के लिए बेमिसाल रह सकती हैं|

एक शिष्य के वास्तविक अनुभव की भावना -जो की ओस्पेन्स्की के सारांश में स्पष्ट रूप से लापता है- उसकी आपूर्ति केन्नेथ वॉकर(१८८२-१९६६) की 'वेंचर विद आइडियास' करती है| यह दिलचस्प मानव संस्मरण, जो इंग्लेंड में ओस्पेन्स्की के साथ लेखक के चौबीस साल के अद्धयन की जीवनी के सन्दर्भ में हैं, सरलता पूर्वक गुर्जिफ़ के मनोवैज्ञानिक और ब्रह्मांड शिक्षण की रूप रेखा बताता है | वॉकर की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि (वह रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जनस में तीन बार हंटरईयन सर्जरी के प्रोफेसर थे) नें उनकी गूड़ विचारों को ग्रहण करने की रूचि को और बढ़ाया|

मानव -जाति दुर्भाग्य से विभाजित है, लेकिन जो लोग इच्छा करते हैं वह मौलिक अस्तित्वगत प्रश्नों को साझा कर सकते हैं| मैं कौन हूँ और मानव जीवन का महत्व और उद्देश्य क्या है? गुर्जिफ़ के शिक्षण की महान इमारत इन भले प्रश्नों की अचल नीव पर निर्भर है| इस विषय को जीन वेस (१९१७-१९७५) जो की ओपन हार्ट सर्जरी और ट्रांसप्लांटेशन के अग्रदूत हैं और गुर्जिफ़ के करीबी शिष्य थे, उन्होंने 'टुवर्ड अवेकेनिंग' में धीरता से विकसित किया है| उनके अंतिम अध्याय में पहली बार ध्यान को शारीरिक संचेतन से जोड़ने वाली गुर्जिफिअन अभ्यास की रूपरेखा है|

पर्वत, जिसकी जड़ धरती में है और जिसका शिखर स्वर्ग की ओर पहुँचता है, मनुष्य की आकांक्षाओं और प्रयास का एक प्राचीन प्रतीक है| रेने दमौल (१९०८-१९४४) जिन्होंने युद्ध के दौरान गुर्जिफ़ के अधीन अद्धयन किया, उन्होंने एक कवि और पर्वतारोही की भाषा में अपना सूक्ष्म और हास्यपूर्ण रूपक ‘माउंट ऐनालोग’ लिखा हमें उस विचित्र भीतरी चड़ाई की याद दिलाने के लिए जो हमें बुला रही है| हालाँकि उनकी युवावस्था में ही मृत्यु हो गयी, उनका लेखन कार्य आधुनिक फ्रांसीसी साहित्य पर अपने प्रभाव को कायम बनाए रखता है|

आने वाले साल निस्संदेह विद्वानों की गुर्जिफ़ में रूचि और बढ़ाएँगे | क्यूंकी उनका शिक्षण अनुभव पूर्ण है, क्यूंकी भ्रामक स्तरों का ख़तरा है, क्यूंकी एक शैक्षणिक अपनी मौलिक ग़लतफहमी या पक्षपात से इसको सुंदरतापूर्वक सजा सकता है, इसलिए इसकी संभावना का स्वागत नहीं करना चाहिए| फिर भी कुछ भविष्यवाणी अच्छी हैं-माइकल वॉंल्डबर्ग नें 'गुर्जिफ़-एन अप्रोच टू हिज़ आइडियास' में सभी प्रमुख ग्रंथों से समझदारी से अंश लिए हैं जो की लोकप्रिय संसलेशण और व्याख्या का काम करता है और एक वास्तविक मापदंड निर्धारित करता है|

और अब?

गुर्जिफ़ नें आज को कल से अधिक प्रधानता दी है| उन्होंने हमें उनका विश्लेषण करने या पूजने के लिए आमंत्रित नहीं किया बल्कि स्वयं की खोज के लिए आमंत्रित किया है|बार बार बीलज़बब पर वापस आते हुए हम लेखक की समृद्ध मानवीय वाणी को पकड़ने लगते हैं जो उनके पोतों-नये युग के शिष्यों, उभरती हुई पीडियाँ जो उनसे मिल नहीं सकती हैं पर जो अज्ञात भविष्य में उनके विचारों के बीज धारण किए हुए हैं, उनके प्रति प्रस्तावित है| और फिर भी अद्धयन की कोई भी तीर्थयात्रा पर्याप्त नहीं है|कोई भी पुस्तक, कोई पवित्र पुस्तक भी नहीं, वह अथाह क्षण प्रदान कर सकती है जब शिक्षक की वास्तविक उपस्थिति में शिष्य की समझ और विस्तृत और गहरी होती है|

 

तो फिर आज हमें किस दिशा में देखना चाहिए? मनुष्य के संपूर्ण स्वाभाव, विभेदन क्षमता और व्यावहारिक ज्ञान की यहाँ आवश्यकता है| क्योंकि यहाँ कई मोहिनी आवाज़ें और स्व विज्ञापन हैं| और फिर भी यह बेवजह नहीं था की गुर्जिफ़ नें शिष्य तैयार किये; यह बेवजह नहीं था की उन्होंने भविष्य के लिए संकेत दिए| और यह बेवजह नहीं था की उनकी मृत्यु के बाद भी संजोए हुए मूव्मेंट्स की दशकों से प्रगति हुई है और जिस प्रवाह की रचना की गयी थी उसको कायम रखने के लिए एक जिम्मेदार नाभिक का निर्माण किया गया था|

 

अब फिर कहाँ? उन लोगों के लिए जिनका गुर्जिफ़ पर दृष्टिकोण व्यावहारिक है, यह एक ऐसा सवाल है जो प्रबल होना चाहिए। सबसे पहले एक बाहरी संपर्क पाया जाना चाहिए: फिर एक आंतरिक संपर्क नए सिरे से और गहरा होना चाहिए।

गुर्जिफ़: एक चुनिंदा ग्रंथ सूची ()

उनका शिक्षण

'बीलज़बब्स टेल्स टू हिज़ ग्रॅंडसन' लेखक जी आई गुर्जिफ़ (१९५०)

'मीटिंग्स विद रिमार्कबल मेन' लेखक जी आई गुर्जिफ़ (१९६३)

'इन सर्च ऑफ द मिरैक्युलस' लेखक पी डी ओस्पेन्स्की (१९४९)

'व्यूस फ्रॉम द रियल वर्ल्ड' जी आई गुर्जिफ़ की वार्ताएँ (१९७३)

गुर्जिफ़ के लिए मार्ग

‘द साइकॉलॉजी ऑफ मेन्स पासिबल एवोल्यूशन’ लेखक पी डी ओस्पेन्स्की (१९७८)

'वेंचर विद आइडियास' लेखक केन्नेथ वॉकर (१९५१)

'टुवर्ड अवेकेनिंग' लेखक जीन वेस (१९८०)

‘माउंट ऐनालोग’ लेखक रेने दमौल (१९८४)

'गुर्जिफ़-एन अप्रोच टू हिज़ आइडियास' लेखक माइकल वॉंल्डबर्ग (१९८१)

गुर्जिफ़ से सामना  

'अवर लाइफ विद मिसटर गुर्जिफ़' लेखक थॉमस और ओल्गा दे हार्टमन (१९६४, १९८३ और १९९२ में संशोधित)

'बॉयहुड विद गुर्जिफ़' लेखक फ्रिट्ज़ पीटर्स (१९६४)

'टीचिंग्स ऑफ गुर्जिफ़' लेखक सी एस नॉट (१९६१)

'अनडिसकवर्ड कंट्री' लेखक कॅत्रिन ह्यूम (१९६६)

'हू आर यू मिसटर गुर्जिफ़' लेखक रेने ज़ुबेर (१९८०)

'ईडियट्स इन पॅरिस' लेखक जे जी और ई बेनेट (१९८०)

फुटनोट्स

१ परन्तु ध्यान आमंत्रित किया जाता है जेम्स मूर द्वारा बाद में लिखी गई जीवनी ‘दि अनॅटमी ऑफ ए मिथ’ (एलिमेंट बुक्स लिमिटेड, १९९१) 

२ जीन डी साल्ज़मैन, 'व्यूस फ्रॉम द रियल वर्ल्ड' का फोरवर्ड(पृष्ठ आठ)

३ जिन विद्वानों नें गहराई से गुर्जिफ़ अद्धयन प्रारंभ किया है उनको पूरे दिल से संकेत किया जाता है जे वॉल्टर ड्रिस्कोल और गुर्जिफ़ फाउंडेशन ऑफ कॅलिफॉर्निया द्वारा 'गुर्जिफ़: एन एनोटेटेड बिब्लियोग्राफी' की ओर(न्यू यॉर्क: गारलॅंड पब्लिशिंग १९८५)

 

©  जेम्स मूर १९८३ और १९९९

 हिंदी अनुवाद © डॉक्टर सौरभ सक्सेना, २०१७

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